इस बज्मे शायरी को मदहोशी में पहुँच जानो दो 'रमेश'
लासानी को ये शिकवा न रहे इसमें,मज़ा आया तो क्या आया!
मेरे लिए हर दिन हर लम्हा नया है 'रमेश'
दस्तूरे-कुदरते दरिया मे बहता हुआ एक कतरा हूँ मैं !
सरूरे शायरी तो मेरी कुदरती फितरत है यारब
ये वोह नशा है जो कभी टूटता नहीं !
---अश्विनी रमेश !
लासानी को ये शिकवा न रहे इसमें,मज़ा आया तो क्या आया!
मेरे लिए हर दिन हर लम्हा नया है 'रमेश'
दस्तूरे-कुदरते दरिया मे बहता हुआ एक कतरा हूँ मैं !
सरूरे शायरी तो मेरी कुदरती फितरत है यारब
ये वोह नशा है जो कभी टूटता नहीं !
---अश्विनी रमेश !
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