जब हम हैं तो जोशे-बज्मे-शायरी है 'रमेश'
जहाँ हम नहीं वहाँ न जोश है न बज़्म है और नाही शायरी !
पता नहीं क्योँ किसी बहत अपने को तलाशती है हमारी रूह
ये वोह एहसास है जो ताजिंदगी बना रहता है !
इन्सा से कोई उम्मीद है न शिकवा है 'रमेश'
बस खुदा का शुक्र करतें हैं उसने जो दिया बहत काफी दिया !
--अश्विनी रमेश !
जहाँ हम नहीं वहाँ न जोश है न बज़्म है और नाही शायरी !
पता नहीं क्योँ किसी बहत अपने को तलाशती है हमारी रूह
ये वोह एहसास है जो ताजिंदगी बना रहता है !
इन्सा से कोई उम्मीद है न शिकवा है 'रमेश'
बस खुदा का शुक्र करतें हैं उसने जो दिया बहत काफी दिया !
--अश्विनी रमेश !
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